बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अस्सलामु अलैकुम वा रहमतुल्लाही वा बरकतुह मेरे प्यारे प्यारे दोस्तों उम्मीद है आप सब खैरियत से होंगे। इस्लामिक जिंदाबाद की जानिब से आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कुराने पाक में किन अंबियाए किराम अलैहिस्सलाम के अस्माए गिरामी आए हैं, अंबियाए किराम अलैहिस्सलाम की तादाद कितनी है, आसमानी किताबों की तादाद कितनी है, नबी किसे कहा जाता है? और कौन नबी नहीं हो सकते?
कुरआन पाक में बाज़ अंबियाए किराम अलैहिस्सलाम के अस्माए गिरामी (नाम) मशहूर हैं और उनके हालातो का भी ज़िक्र किया गया है और बाज़ अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम के नाम तो हैं लेकिन उनके हालात ज़िक्र नहीं किये गये जैसे हज़रत यसआ अलैहिस्सलाम और हज़रत जुलकिपुल अलैहिस्सलाम और बाज़ के वाक्यात ज़िक्र हैं लेकिन नाम नहीं, जैसे हज़रत हज़कैल अलैहिस्सलाम और हज़रत शमूईल अलैहिस्सलाम और बाज़ के नाम भी नहीं और हालात भी नहीं जैसे हज़रत दानयाल अलैहिस्लसाम ।
कुरआन पाक में किन अंबियाए किराम के नाम है :
- हज़रत आदम अलैहिस्सलाम
- हज़रत नूह अलैहिस्सलाम
- हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम
- हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम
- हज़रत इसहाक अलैहिस्सलाम
- हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम
- हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम
- हज़रत हूद अलैहिस्सलाम
- हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम
- हज़रत लूत अलैहिस्सलाम
- हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम
- हज़रत हारुन अलैहिस्सलाम
- हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम
- हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम
- हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम
- हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम
- हज़रत यहया अलैहिस्सलाम
- हज़रत इल्यास अलैहिस्सलाम
- हज़रत यसआ अलैहिस्सलाम
- हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम
- हज़रत जुलकिफ़्ल अलैहिस्सलाम
- हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम
- हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम
- हज़रत ईसा अलैहिमुस्लसातु वस्सलाम
- हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ।
अंबियाए किराम अलैहिस्सलाम की तादाद
अगरचे मश्हूर रिवायत है कि अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम की तादाद एक लाख चौबीस हज़ार है लेकिन एक रिवायत में दो लख चौबीस हज़ार का भी ज़िक्र है। एक रिवायत में आठ हज़ार का भी ज़िक्र है। इसलिये बेहतर यह है कि अक़ीदा यह हो कि जितने अंबियाए किराम अलैहिस्सलाम रब तआला की तरफ से आये हैं सब बरहक हैं उन तमाम पर हमारा ईमान है ख़ास तादाद ज़िक्र न की जाये, क्योंकि ऐसा न हो कि यह कम तादाद पर ईमान लाये और वाकई में ज़ायद हों, या ऐसा न हो कि यह ज़ायद तादाद पर ईमान लाये और वाकई में कम हों ।
पहली सूरत में कई अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम पर ईमान नहीं होगा और दूसरी सूरत में जो नबी नहीं होंगे उन को नबी मानना लाज़िम आयेगा इसलिये दोनों सूरतों में खराबी आती है लिहाज़ा यही बेहतर सूरत है कि यह ईमान रखे। ऐ अल्लाह तेरी तरफ से भेजे हुए तमाम अंबियाए किराम अलैहिस्सलाम पर मेरा ईमान है और वह बरहक है।
रसूलों और आसमानी किताबों की तादाद :
तमाम अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम में से बाज़ ज़्यादा मर्तबा वाले नबी हुए हैं जिन को रसूल कहा जाता है उन रसूलों की तादाद तीन सौ तेरह है और आसमानी किताबों की तादाद कुल एक सौ चार है। चार के मुस्तकिल नाम हैं, तौरेत, इंजील, ज़बूर, कुरआन पाक और एक सौ के मुस्तकिल नाम नहीं बल्कि उनको सही कहा जाता है ।
नबी किसे कहा जाता है?
नबी का लफ़्ज़ या तो "नबावह" से बना है जिसका मतलब होता है बुलंदी मर्तबा और या यह लफ़्ज़ बना है "नवा" (बा- साकिन) से जिस का मतलब होता है ख़बर देना ज़ाहिर करना और या यह लफ़्ज़ बना है 'नवाह' (वा - साकिन और ता ज़ायद ) से जिसका मतलब होता है मख़फ़ी आवाज़ |
पहले मायने के लिहाज़ से नबी को "नबी" इसलिये कहते हैं कि तमाम मखलूक से बुलंद मर्तबा रखता है। दूसरे मायने के लिहाज़ से कि वह हक बात को ज़ाहिर करता है और ग़ैबी ख़बरें देता है और तीसरे मायने के लिहाज़ से वह वही (कुरआन ) को सुनता है जो आवाज़ दूसरों पर मख़फ़ी होती है।
इसी तरह एक एहतेमाल यह भी है कि यह लफ़्ज़ असल में नबीया हो तो उस वक़्त मायने होता है रास्ता, इस सूरत में नबी को नबी कहने की वजह यह होगी कि वह अल्लाह तआला और मखलूक के दर्मियान रास्ता होता है जिस तरह रास्ता मंज़िले मकसूद तक पहुंचने का ज़रिया होता है इसी तरह अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम रब तआला का कुर्ब हासिल करने और मंज़िले मुराद को पाने का ज़रिया और रास्ता होते हैं।
यह तो लफ़्ज़ "नबी" के लगवी मायने थे जो सब के सब नबी में बेयक वक़्त जमा होते हैं।
इस्तेलाही तौर पर नबी की तारीफ़ यह है कि:
"बनीए आदम से हो, यानी इंसान हो, मुज़क्कर हो, आज़ाद हो, उसकी तरफ वही (कुरआन) आए और लोगों तक अल्लाह के अहकाम पहुंचाए, नेक लोगों को जन्नत की बशारत दे और कुफ़्फ़ार को जहन्नम से डराये और मोजज़ात के ज़रिये उसकी नबुव्वत को ताईद हासिल होती है।
रसूल का मायने पैग़ाम पहुंचाने वाला, भेजा हुआ। लेकिन इस्तेलाह में रसूल उसे कहते हैं। जिसे किताब भी अता हो या पहली शरीअत पर अमल करना ख़त्म हो चुका हो तो फिर से पहली शरीअत की तजदीद का हुक्म दिया जाये। हर रसूल नबी ज़रूर होता है लेकिन हर नबी का रसूल होना ज़रूरी नहीं ।
तमाम रसूलों और अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम को मोजज़ात से तवियत पहुंचाई जाती है अब देखना यह है कि मोजिज़ा किसे कहते हैं?
मोजिज़ा :
आदत के ख़िलाफ़ आलात के वासता के बगैर मुद्दई नबुव्वत से बाद अज़ ऐलाने नबुव्वत किसी काम का खिलाफे आदत सर जद होना, मोजिज़ा कहलाता है। आदत के मुताबिक काम करने का नाम मोजिज़ा नहीं, जिसे तेज़ दौड़कर दूसरों से आगे निकल जाना, तेज़ नज़र वाले शख़्स का किसी चीज़ को इतने दूर से देख लेना कि आम आमदी को नज़र न आ सके। इस तरह के काम मोजिज़ा नहीं कहलाते ।
आलात के वास्ता से आदत के खिलाफ काम करने का नाम भी मोजिज़ा नहीं। टेलीफ़ोन के ज़रिये दूर दराज़ बात कर लेना टेलीविज़न के ज़रिये किसी की शक्ल देख लेना वगैरह इस तरह के काम मोजिज़ात नहीं ।
मोजिज़ाः सिर्फ नबी से आदत के ख़िलाफ़ होने वाले काम का नाम है। गैर नबी ने कोई काम हैरत अंगेज़ कर दिया हो तो उसे मोजिज़ा कहना जहालत व दीवानगी है, जैसे आज के दौर में आम कामों को मोजिज़ा कहना अक्सर पढ़े लिखे बेवकूफों में रिवाज पा चुका है जो सरासर बातिल है।
अरहास :
ऐलाने नबुव्वत से पहले नबी से आदत के खिलाफ कोई काम सर ज़द हो तो उसे मोजिज़ा नहीं कहा जायेगा बल्कि उसको अरहास कहा जायेगा जैसे हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ऐलाने नबुव्वत से पहले ही पत्थर सलाम किया करते थे और हज़रत ईसा
अलैहिस्सलाम ने बचपन में कलाम फ़रमाया ।
करामत :
अल्लाह के वली से कोई काम आदत के खिलाफ वाकेय हो तो उसे करामत कहा जायेगा।
मऊनत:
आम मोमिन जो वली नहीं और फासिक भी नहीं तो उससे कोई काम आदत के ख़िलाफ़ हो तो उसे मऊनत कहा जायेगा।
इस्तिदराज काफिर या फासिक के हाथों शोबदा बाज़ी का मुजाहरा आदत के ख़िलाफ़ काम करने को इस्तिदराज कहते हैं क्योंकि वह इसकी वजह से जहन्नम की आग में पहुंच जाता है।
इस्तिदराज का मतलब होगा आग की तरफ पहुंचाना। यह उस वक़्त है जब यह कलाम उसकी गर्ज़ के मुताबिक वाकेय हों।
इहानत:
काफिर से कोई काम आदत के खिलाफ सर ज़द हो लेकिन उसकी गर्ज़ के ख़िलाफ़ हो तो उसे इहानत कहते हैं जैसे मुसैलमा कज़्ज़ाब ने अपना कमाल ज़ाहिर करना चाहा तो कुल्ली करके पानी कुंए में डाला तो वह नमकीन और कड़वा हो गया। एक शख़्स की एक आंख बेकार थी उस पर हाथ फेर कर दुरुस्त करना चाहा तो दूसरी आंख भी बेकार हो गई।
सहर (जादूगरी)
कुछ लोग अपने ख़ास आमाल के ज़रिये शयातीन की इमदाद से कई काम आदत के खिलाफ वाकेय करते हैं यह सहर यानी जादूगरी है।
तंबीह : मुखालफीन के चैलेंज और मुतालबा पर और नबी के दावा पर मोजिज़ा का वकूअ ज़रूरी हो जाता है लेकिन करामत का वकूअ ज़रूरी नहीं।
कौन नबी नहीं हो सकते?
मोअन्नस को नबी नहीं बनाया गया क्योंकि तबलीगे दीन उनसे मुमकिन नहीं। नबी को घर से बाहर मर्दों के हुजूम और मजालिस में अहकाम इलाहिय पहुंचाने होते हैं यह काम मोअन्नस से नहीं हो सकते।
'गुलाम' नबी नहीं हो सकता क्योंकि गुलाम दूसरे लोगों की नज़र में हक़ीर होता है और मालिक की इजाज़त के बगैर कोई काम नहीं कर सकता इसलिये उससे तबलीगे अहकाम दीन मुमकिन नहीं।
जिन्न और फ़रिश्ते नबी नहीं बनाए गये। जिन्स का जिन्स से फायदा हासिल करना तो मुमकिन होता है लेकिन दूसरी जिन्स से फ़ायदा हासिल करना मुश्किल होता है इस लिये इंसानों को फायदा पहुंचाने के लिये नबी का इंसान होना ज़रूरी है इसलिये अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमायाः
अगर हम नबी को फरिश्ता बनाते जब भी उसे मर्द ही बनाते। (अनआम ६ )
यह उन कुफ़्फ़ार को बताया गया है जो अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम को अपने जैसा बशर कह कर ईमान से महरूम होते थे कि हम उस पर ईमान क्यों लायें तो अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि नबी की तालीम से फैज़ हासिल करने का यही तरीका है कि नबी को इंसानी शक्ल में भेजा जाये ताकि वह लोग फायदा हासिल कर सकें। अगर फरिश्ता को नबी बनाते तो उसे असली शक्ल में देखने की इंसानों में ताकत ही न होती अगर फरिश्ता को नबी बनाया भी होता तो इंसानी शक्ल में ही आता ताकि लोग उससे फ़ैज़ हासिल कर सकते।
नबी गुनाहों से पाक होते हैं:
इमाम काज़ी अयाज़ रहमतुल्लाहि अलैहि फ़रमाते हैं: फुकहाए किराम और मुतकल्लिमीन में से मुहक्केकीन की एक जमाअत का मज़हब यही है कि अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम जिस तरह कब्ल अज़ नबुव्वत और बाद अज़ नबुव्वत कबीरा गुनाहों से पाक हैं उसी तरह सग़ीरा गुनाहों से भी पाक हैं।
अंबियाए किराम अख़लाके अज़ीमा के मालिक होते हैं।
अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम को अल्लाह तआला ने ऐलाने नबुव्वत से पहले भी ऐसे आला और पाकीज़ा अख़लाक़ अता किये होते हैं ताकि लोग उनके माज़ी हाल मुस्तबिल पर कोई ऐतराज़ न कर सकें, यानी यह पाकीज़ा अखलाक उनको तमाम औकात में हासिल रहते हैं शुजाअत बुर्दबारी, करीमाना गुफ़्तगू वगैरह हर तरह के अच्छे अखलाक के मालिक होते हैं और रज़ील व घटिया कामों से पाक होते हैं ।
नफ़्से नबुव्वत में तमाम अंबिया अलैहिमुस्सलाम बराबर हैं:
तमाम अंबिया किराम अलैहिमुस्सलाम नफ़्से नबुव्वत में यानी बहैसियत नबी होने के बराबर हैं। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि किसी नबी की नबुव्वत असली हो और किसी नवी की नबुव्वत आरजी हो, बल्कि तमाम अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम की नबुव्वत असली है। किसी नबी की नुबूवत आरजी नहीं हां अलबत्ता दर्जात के लिहाज़ से बाज़ अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम को बाज़ पर फ़ज़ीलत हासिल है और तमाम अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम से अफज़ल हमारे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं।
दुनिया में तशरीफ लाने के लिहाज़ से सबसे पहले आने वाले हज़रत आदम अलैहिस्सलाम हैं और सब से आखिर में तशरीफ लाने वाले हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं।
आज आपने क्या जाना (Conclusion)
मेरे प्यारे प्यारे दोस्तों हमारी आज की पोस्ट जिसमें आज हमने कुराने पाक में किन अंबियाए किराम अलैहिस्सलाम के अस्माए गिरामी आए हैं, अंबियाए किराम अलैहिस्सलाम की तादाद कितनी है, आसमानी किताबों की तादाद कितनी है, नबी किसे कहा जाता है? और कौन नबी नहीं हो सकते? को जाना
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